जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रही हैं लघु जलविद्युत परियोजनाएं

उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली, 1 जून : लघु जलविद्युत परियोजनाओं को स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। लेकिन, भारतीय वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि इन परियोजनाओं के कारण पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को लगातार नुकसान हो रहा है।

वाइल्ड लाइफ कन्जर्वेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों द्वारा पश्चिमी घाट में किए गए इस अध्ययन में लघु जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है। अध्ययन से पता चला है कि लघु जलविद्युत परियोजनाओं के कारण जल की गुणवत्ता, प्रवाह ज्यामिति और मछली समूहों में बदलाव हो रहा है।

बंगलूरू स्थित वाइल्ड लाइफ कन्जर्वेशन सोसायटी ऑफ इंडिया, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी ऐंड एन्वायरमेंटऔर फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल रिसर्च एडवोकेसी ऐंड लर्निंग के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन किया गया है।अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका ‘एक्वेटिक कन्जर्वेशन’ में प्रकाशित किए गए हैं।

पश्चिमी घाट में स्थित एक लघु जलविद्युत परियोजना (फोटो : कल्याण वर्मा)

इस अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता सुमन जुमानी के अनुसार, “बांधों के कारण लंबी दूरी तक नदी का जलप्रवाह परिवर्तित होता है। इससे शुष्क मौसम में नदी का विस्तृत हिस्सा लगभग जल रहित हो जाता है। ऐसे नदी क्षेत्रों के जल में ऑक्सीजन का स्तर कम और जल का तापमान अधिक हो जाता है। जलीय आवास में इस तरह के परिवर्तन का असर मछलियों पर पड़ता है।”नेत्रवती नदी के ऊपरी हिस्से में यह अध्ययन किया गया है, जो पश्चिमी घाट में जैव विविधता का एक प्रमुख क्षेत्र है। बांध वाली दो सहायक नदियों और पश्चिम की ओर बहने वाली नेत्रवती नदी की बांध रहित एक सहायक नदी को अध्ययन में शामिल किया गया है।

किसी लघु जलविद्युत परियोजना में मुख्य रूप से चार भाग होते हैं। इनमें नदी की जलधारा को बाधित कर जलाशय निर्माण तथा जल प्रवाह मोड़ने के लिए बनाया जाने वाला बंध या बंधिका, टरबाइन युक्त पावरहाउस, पेनस्टॉक पाइप और विसर्जन जलमार्ग शामिल हैं। बंध पर परिवर्तित किए गए प्रवाह का जल पाइपों के जरिये पावरहाउस में बिजली उत्पादन के लिए भेजा जाता है और फिर विसर्जन मार्ग के जरिये इसे दोबारा नदी के निचले हिस्से में छोड़ दिया जाता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लघु जलविद्युत परियोजनाओं में बांध के निचले हिस्से में जलप्रवाह कम होने से नदी का सामान्य प्रवाह प्रभावित होता है और बिजली उत्पादन के बाद नदी में जब पानी वापस भेजा जाता है तो जल प्रवाह में उतार-चढ़ाव भी होता है। इन दोनों परिस्थितियों का असर मछलियों पर पड़ता है, जिससे मछली समूहों की संरचना में बदलाव हो रहा है और मछली प्रजातियों की संख्या कम हो रही है।

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, कुछेक नदियों में ही पायी जाने वाली अनूठी मछली प्रजातियों की तुलना में व्यापक रूप से पायी जाने वाली मछलियों की सामान्य प्रजातियां बांध के आसपास के क्षेत्र में अधिक थीं, जो कठोर वातावरण में जीवित रह सकती हैं। मछलियों की कई प्रवासी प्रजातियां भी इन परियोजनाओं के कारण प्रभावित हो रही हैं। स्थानीय जीव प्रजातियां भी इन परियोजनाओं के कारण खतरे में पड़ रही हैं। यह चिंता का विषय है क्योंकि ये प्रजातियां सिर्फ पश्चिमी घाट में ही पायी जाती हैं, जिन पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

वाइल्ड लाइफ कन्जर्वेशन सोसायटी ऑफ इंडिया से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता शिशिर राव के मुताबिक. “इससे पूर्व किए गए अध्ययनों में भी लघु जलविद्युत परियोजनाओं के दुष्प्रभावों के संकेत मिले हैं। पश्चिमी घाट में परियोजना के निर्माण क्षेत्रों में इन्सानों और हाथियों के टकराव के मामले भी बड़ी संख्या में सामने आए हैं। बांध के अलावा उससे संबंधित अन्य संरचनाओं के कारण हाथियों का मार्ग अवरुद्ध होने से उन्हें नए रास्तों की तलाश करनी पड़ती है, जिससे टकराव की घटनाएं अधिक होती हैं।”

लघु जलविद्युत परियोजनाओं में बड़े जलविद्युत संयंत्रों की अपेक्षा ऊर्जा उत्पादन की कम क्षमता होती है। भारत में 25 मेगावाट तक ऊर्जा उत्पादन वाले संयंत्रों को लघु परियोजनाओं की श्रेणी में रखा जाता है। इन परियोजनाओं का प्रसार जैव विविधता से संपन्न पश्चिमी घाट और हिमालय क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहा है।

जुमानी के अनुसार, “नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की योजना करीब 6500 अतिरिक्त लघु जलविद्युत परियोजनाओं बनाने की है। इनमें से अधिकतर नियोजित बांध पश्चिमी घाट और हिमालय के जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्रों में स्थित हैं। इन परियोजनाओं के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के मूल्यांकन और जरूरी न्यूनतम जलप्रवाह बनाए रखने के लिए संबंधित नीतियों को संशोधित किया जाना चाहिए।”

सुमन जुमानी और शिशिर राव के अलावा अध्ययनकर्ताओं में नचिकेत केलकर, सिद्धार्थ माचदो, जगदीश कृष्णास्वामी और श्रीनिवास वैद्यनाथन शामिल थे।

Twitter handle : @usm_1984

(इंडिया साइंस वायर)

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *