हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के निवासियों ने मई और जून (2018) में जर्बदस्त जल संकट को झेला। इस जल संकट के लिए कई कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। शिमला जल आपूर्ति के लिए मुख्यतः धारा एवं झरना जैसे सतह जल संसाधनों पर निर्भर है। दरअसल शिमला शहर में जलापूर्ति गुम्मा, गिरि, चुरट, चेयर और अश्वनी खाद से होती है। इनमें से गुम्मा और गिरि से शिमला में 73 प्रतिशत जल की आपूर्ति की जाती है। वर्षा के मौसम में इन दोनों स्रोतों से जल आपूर्ति मुश्किल हो जाता है।
इस जल संकट के निम्नलिखित कारण थे:
1- नौटी खाद धारा का लगभग सूख जाना। गुम्मा स्थित जल निकाय के प्रमुख जल स्रोतों में से एक है नौटी खाद धारा। गुम्मा शिमला का प्राचीनतम जल आपूर्ति स्कीम है। इस जल आपूर्ति स्कीम का निर्माण 1921-22 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कराया गया था। 25 मई को इसी धारा में जल आपूर्ति महज 9-39 मिलियन लीटर दैनिक हो चुका था। आम दिनों में इसमें 18-20 मिलियन लीटर दैनिक जल आपूर्ति होती है।
2- दूसरा कारण है वर्षण की अनियमितता। कभी इतनी अधिक वर्षा हो जाती है कि जल आपूर्ति में कीचड़ जमा हो जाता है जिससे पंप सही तरीके से काम नहीं करते। वहीं कम वर्षा में धारा सूख जाती है।
3- जलधारा के नजदीक नलकूपों की अधिकता भी संकट को और गहरा कर रहा है। इससे जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। इससे जल में काफी कमी आ रही है।
4- जल धाराओं में अवैज्ञानिक तरीके से कचरा फेंका जाना भी जल संकट को आमंत्रण दे रहा था।
5- जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ वन आच्छादन एवं झाडि़यों में कमी आई है। दूसरी ओर कम पानी की आवश्यकता वाले दाल एवं गेहूं की जगह ग्रामीणों द्वारा सब्जियां उगाने पर बल दिया जा रहा है जिसके लिए अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। उर्वरकों के उपयोग के कारण मृदा स्वरूप में भी परिवर्तन आ रहा है।
6- जलापूर्ति प्रणालियों का ब्रिटिश जमाने का होना, पाइपलाइन का खराब रख-रखाव, रिसाव की निरंतरता, गैर-कानूनी तरीके से टेप लगाना कुछ अन्य कारण हैं।
उपायः शिमला में गंभीर जल संकट को देखते हुये राज्य के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने नगर निगम को तुरंत कुछ कदम उठाने के निर्देश दिये। इनमें शामिल हैं; पाइपलाइन में रिसाव को ठीक करना तथा क्रेगनानो से धाली में मुख्य जल आपूर्ति लाइन को बदलने के काम को पूरा करना।