कोल्लेगला शर्मा
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मैसूर, 14 जून : हैदराबाद स्थित भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने संशोधित सांबा मसूरी चावल की नई रोग प्रतिरोधी प्रजाति विकसित की है, जो बैक्टिरिया से होने वाली ब्लाइट बीमारी के प्रति अधिक प्रतिरोधी पायी गई है।
चावल की फसल में होने वाले ब्लाइट रोग के लिए क्सैंथोमोनास ओराईजे नामक बैक्टिरिया को जिम्मेदार माना जाता है। इस बीमारी के कारण फसल उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित होती है। बेहतर उपज देने वाली सांबा मसूरी की संशोधित प्रजाति में पहले से ब्लाइट रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है, परवैज्ञानिकों ने अब एक नए जीन एक्सए38 को उसमें सम्मिलित किया है, जिससे फसल की प्रतिरोधक क्षमता पहले से अधिक हो गई है।
इस अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिक डॉ गौरीशंकर लाहा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “विभिन्न स्रोतों से अब तक करीब 41 प्रतिरोधी जीन्स की पहचान की गई है। अपनी प्रतिक्रिया के आधार पर ये जीन्स अलग-अलग होते हैं और इनकी प्रतिरोधक क्षमता भी एक दूसरे से भिन्न होती है। इस नई किस्म का परीक्षण विभिन्न राज्यों में करने के बाद वैज्ञानिकों ने इसे बैक्टिरिया जनित ब्लाइट रोग के नियंत्रण के लिए प्रभावी पाया है। अभी इसके कई अन्य परीक्षण किए जाएंगे और फिर यह सांबा मसूरी की यह नई रोग प्रतिरोधी किस्म व्यावसायिक रूप से जारी की जा सकेगी।”
जीन्स हस्तांतरण के लिए मार्कर आधारित बैकक्रॉस ब्रीडिंग (एमएबीबी) का उपयोग किया गया है। जीन संवर्द्धित फसलों में उपयोग होने वाली ट्रांसजेनिक तकनीक की अपेक्षा एमएबीबी जीन हस्तांतरण की कम श्रमसाध्य और प्रभावी विधि मानी जाती है। ट्रांसजेनिक फसलों तरह नियामक मंजूरी की आवश्यकता इस तकनीक के उपयोग के लिए नहीं पड़ती।
वर्ष 2008 में जारी होने के बाद संशोधित सांबा मसूरी चावल की खेती दक्षिण और पूर्वी भारत में करीब 80हजार हेक्टेयर में की जा रही है।संक्रमण बढ़ने पर काफी देर से प्रयोगों में देखा गया कि संशोधित सांबा मसूरी के पौधों में घाव लंबे थे। फसल में पाए गए इन लक्षणों से वैज्ञानिकों ने क्सैंथोमोनास बैक्टिरिया के नए रूप के विकसित होने की आशंका जतायी है।
क्सैंथोमोनास एक खतरनाक बैक्टिरिया है, जो बेहद तेजी से फैलता है और फसल को अपनी चपेट में ले लेता है। यह फसल को कुछ इस तरह प्रभावित करता है कि पौधे देखने में रोग प्रतिरोधी लगते हैं, पर कुछ समय बाद उनमें बीमारी के लक्षण उभरने लगते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा बैक्टिरिया के रूपांतरण के कारण होता है।
कर्नाटक स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज से जुड़े वैज्ञानिक डॉ सी.ए. दीपक, जो इस अध्ययन में शामिल नहीं थे, के मुताबिक, “बैक्टिरिया अपना रूप बदलता रहता है, ऐसे में रोग प्रतिरोधी फसल प्रजातियों का निरंतर विकास जरूरी है। यह संभव है कि पौधे का कोई हिस्सा बैक्टिरिया प्रतिरोधी हो, पर किसी अन्य हिस्से में बैक्टिरिया से लड़ने की क्षमता न हो। इसलिए बैक्टीरिया से होने वाली ब्लाइट बीमारी को रोकने के लिए फसल प्रजातियों में सुधार एक सतत प्रक्रिया है।”
अध्ययनकर्ताओं में डॉ लाहा के अलावा अर्रा युगांदर, रमन एम. सुंदरम, कुलदीप सिंह, दुरईसामी लाधलक्ष्मी, लेला वी. सुब्बाराव, मागंती शेषु माधव, ज्योति बद्री और सेती श्रीनिवास प्रसाद शामिल थे। अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किए गए हैं।
(इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र