क्या: दिवालिया एवं शोधन अक्षमता संहिता(संशोधन) अध्यादेश, 2018
कब: 6 जून 2018
किसने: राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद
- राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 6 जून 2018 को दिवालिया एवं शोधन अक्षमता संहिता(संशोधन) अध्यादेश, 2018 (Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Ordinance, 2018) को घोषित करने की अनुमति प्रदान की।
- यह अध्यादेश घर खरीददारों की स्थिति को वित्तीय लेनदार के रूप में मान्यता प्रदान कर बड़ी राहत देता है ।
- यह उनको लेनदार समिति में वांछित प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा एवं निर्णय लेने की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण भाग बनाएगा।
- यह घर खरीदने वालों को पथभ्रष्ट भवन निर्माताओं के विरुद्ध दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी), 2016 की धारा 7 का इस्तेमाल करने का अधिकार भी देगा।
- लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम क्षेत्र के उद्यमजो एक बड़े नियोक्ता के रूप में कृषि क्षेत्र के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं, एक और प्रमुख लाभार्थी होंगे। रोज़गार सृजन एवं आर्थिक विकास के मामले में एमएसएमई क्षेत्र की महत्ता समझते हुए यह अध्यादेश सरकार को उन्हें संहिता के अंतर्गत विशेष छूट देने की शक्ति प्रदान करता है।
- जो लाभ यह फौरन प्रदान करता है वह यह है कि यदि प्रमोटर एक इरादतन बाकीदार नहीं है एवं किसी अन्य प्रकार की अयोग्यता वाला नहीं है तो उसके उद्यम की कारपोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के दौरान उसको अयोग्य करार नहीं देता है। यदि आवश्यक हो तो यह केंद्र सरकार को जनहित में आगे एसएसएमई क्षेत्र से संबंधित छूट की अनुमति प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है।
- सीआईआरपी की शुचिता की रक्षा करने के लिये अध्यादेश यदि कोई आवेदक किसी ऐसे मामले को वापस लेना चाहता है जो आईबीसी 2016 के अंतर्गत स्वीकृत हो चुका हो, एक सख़्त प्रक्रिया निर्धारित करता है । तत्पश्चात मामले की यह वापसी लेनदार समिति द्वारा 90% मतदान से स्वीकृत होने पर ही अनुमत होगी ।
- इसके अतिरिक्त मामले की यह वापसी रुचि-प्रकटन (इओआई)आमंत्रण के नोटिस के प्रकाशन पर ही अनुमत होगी । अन्य शब्दों में रुचि-प्रकटन एवं बोली की वाणिज्यिक प्रक्रिया शुरू होने के बाद मामले का लौटाव नहीं हो पाएगा।कारपोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के लिये आवश्यक घटनाक्रम, प्रक्रियाओं एवं कार्यपद्धतियों को निर्धारित कर नियमन अलग से और अधिक स्पष्टता प्रदान करेंगे।
- कुछ विशेष विषय जिनका समाधान प्रस्तुत किया जाएगा उनमें देरी से आई बोलियों पर कोई विचार न किया जाना, देरी से बोली लगाने वालों से कोई वार्ता न होना एवं परिसम्पत्तियों के मूल्यवर्द्धन की श्रेष्ठ प्रक्रिया शामिल हैं।
- परिसमापन के स्थान पर समाधान को प्रोत्साहन देने के विचार से सभी बड़े निर्णयों जैसे समाधान योजना का स्वाकरण, सीआईआरपी अवधि का विस्तार इत्यादि के लिये वोटिंग की सीमा 75 प्रतिशत से घटाकर 66 प्रतिशत कर दी गई है । इसके अतिरिक्त दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के दौरान कॉर्पोरेट कर्ज़दार की सहायता के लिये सामान्य फैसलों हेतु मतदान सीमा 51% कर दी गई है ।
- अध्यादेश प्रतिभूति धारक, जमानत धारक एवं अन्य सभी वर्गों के वित्तीय लेनदार जो एक निश्चित संख्या से अधिक हों, की अधिकृत प्रतिनिधित्व के माध्यम से लेनदार समिति में भागीदारी की इजाज़त देने की प्रक्रिया का प्रावधान भी रखता है।
- आईबीसी, 2016 की मौजूदा धारा 29(क) को भी परिशोधित किया गया है।संहिता की धारा 29(क) में अयोग्यता के लंबे चौड़े प्रावधानों के मद्देनज़र अध्यादेश में प्रावधान है कि आवेदक बोली लगाने की अर्हता प्रमाणित करने वालाशपथपत्र जमा कराएगा । इससे अर्हता प्रमाणित करने का प्राथमिक उत्तरदायित्व समाधान-आवेदक पर होगा।अध्यादेश सफल समाधान-आवेदक हेतु अलग-अलग क़ानूनों के अंतर्गत आवश्यक विभिन्न वैधानिक आबन्धों को पूरा करने के लिये न्यूनतम एक वर्ष की अनुग्रह-अवधि प्रदान करता है । इससे नये प्रबंधन को समाधान प्रक्रिया के सफल कार्यान्वयन की पालना करने में अत्यधिक मदद मिलेगी ।