- सारा इकबाल
बंगलूरू, 6 जून : भारत में आम की लगभग 30 व्यावसायिक किस्में प्रचलित हैं, जबकि यहां हजारों विभिन्न प्रकार के आम के पौधों को उगाया जाता है और देशभर में उनका प्रसार किया जाता है। कई बार पारखी लोगों के लिए भी आम की प्रजातियों की पहचान करना कठिन होता है।
आम की इतनी बड़ी जैव विविधता के बावजूद, देश में ऐसा कोई संग्रह नहीं है, जहां इस संपन्न विरासत का लेखा-जोखा रखा जा सके। त्रिसूर स्थित केरल कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अब एक नया डाटाबेस तैयार किया है, जो आम प्रजनकों के लिए विशेष रूप से मददगार हो सकता है। इस डाटाबेस में आम की 40 प्रजातियों को उनकी उनकी विशेषताओं के आधार पर सूचीबद्ध किया गया है।
इस परियोजना से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार, “जहां तक दक्षिण भारतीय आम की किस्मों का संबंध है तो यह एक संपूर्ण डाटाबेस है। हालांकि, देश के अन्य हिस्सों में आम की किस्मों की बात करें तो इस संग्रह में और भी प्रजातियां शामिल की जा सकती हैं।” इससे संबंधित अध्ययन रिपोर्ट शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित की गई है।
फिलहाल किसी भी उपलब्ध डाटाबेस में इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (आईबीपीजीआर) के मानकों के अनुरूप आम के जर्मप्लाज्म के बारें में विस्तार से जानकारी नहीं दी गई है। फूड ऐंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन के सामान्य बागवानी डाटाबेस में भी केवल अल्फांसो का ही उल्लेख किया गया है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से विकसित किए गए आम के इस डाटाबेस में भी सीमित आंकड़े हैं।
इस अध्ययन से जुड़े केरल कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दीपू मैथ्यू ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “फिलहाल हमारा ध्यान फल के गुणों पर केंद्रित है क्योंकि फल के स्वाद को पैमाने पर मापा नहीं जा सकता है। फूलों, बीज, पत्तियों और पुष्पण के समय समेत विभिन्न भौतिक गुणों के आधार पर आम की किस्मों को इस डाटाबेस में सूचीबद्ध किया गया है। यह जानकारी प्लांट ब्रीडर्स और किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकती है।”
इस डाटाबेस के ड्रॉपडाउन मेन्यू में आम की किसी प्रजाति का चयन करने पर उसके 20 से अधिक गुणों के बारे में जानकारी मिल सकती है। एक अन्य अनुभाग में फूल, पत्तियों और फल की तस्वीरों को संग्रहित किया गया है ताकि आम की प्रजातियों की पहचान आसानी से की जा सके।
परिष्कृत डाटाबेस के निर्माण के लिए आम की विविध किस्मों का चयन बेहद सतर्कतापूर्वक किया गया है, जिसकी कमी अन्य संग्रहों में आमतौर पर महसूस की जाती है। ऑनलाइन सूचीबद्ध किए गई 40 किस्मों को सावधानीपूर्वक उन 160 प्रजातियों के संग्रह से चुना गया है, जिनका संरक्षण एवं विकास केरल कृषि विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 1992 से जीन सेंचुरी के अंतर्गत किया जा रहा है। इनमें 40 अत्यंत विशिष्ट किस्मों को इस डाटाबेस में शामिल किया गया है। इन प्रजातियों को फलों के रंग, फल के आकार, फूल के प्रकार, पेड़ के आकार, पत्ते के प्रकार जैसे लक्षणों को केंद्र में रखकर चुना गया है।
मैथ्यू के अनुसार, “जीन सेंचुरी एक संग्रह है, जिसमें पौधों की सभी प्रजातियां शामिल रहती हैं, भले ही वे व्यावसायिक रूप से अनुकूल न हों। फसल प्रजनन के लिए इस तरह के संग्रह अत्यधिक मूल्यवान हो सकते हैं। कुछ पौधे मीठे फलों का उत्पादन नहीं करते हैं, लेकिन वे कीटों या तापमान के खिलाफ प्रतिरोधी हो सकते हैं। इसलिए प्रजनन के लिहाज से वे बहुत मूल्यवान हो सकते हैं।”
शोधकर्ताओं की टीम में टी. राधा, प्रियंका जेम्स, एस. सिमी, संगीता पी. डेविस, पी.ए. नज़ीम और एम.आर. शिलजा शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र