सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 16 फरवरी, 2018 को दिये गये अंतिम निर्णय के बाद कावेरी नदी के जल को लेकर मुख्य रूप से तमिलनाडु व कर्नाटक के बीच 126 वर्षों से चल रहे विवाद की समाप्ति की उम्मीद की जा रही है। न्यायालय के इस निर्णय की समीक्षा अब 15 वर्ष पश्चात ही यानी 2022 में ही हो सकती है।
- निर्णय के मुख्य बिंदु
- मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति अमिताव राय व न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की पीठ ने अपने 465 पृष्ठ के निर्णय में कावेरी जल टिब्यूनल के 5 फरवरी 2007 के फैसले में आंशिक बदलाव करते हुये उसके अधिकांश निर्णय को ही माना है।
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत कावेरी नदी के कुल 740 टीएमसी जल में से कर्नाटक को कावेरी नदी का 284.75 टीएमसी पानी मिलेगा जो कि पहले 270 टीएमसी था, जबकि तमिलनाडु को 419 टीएमसी के बदले केवल 404.25 टीएमसी ही मिलेगा।
- केरल और पुडुचेरी को दिये जाने वाले पानी के हिस्से में कोई परिवर्तन नहीं किया। केरल को 30 टीएमसी व पुडुचेरी को 7 टीएमसी पानी मिलेगा।
- कावेरी के जल में कर्नाटक का हिस्सा पहले से 14.75 टीएमसी बढ़ा दिया गया और तमिलनाडु के हिस्से में इतनी ही कटौती हो गई है। हालांकि तमिलनाडु के लिए इसकी भरपाई 10 टीएमसी फीट भूमिगत जल लेने की अनुमति देकर की गई है।
- हालांकि तमिलनाडु ने तर्क दिया था कि बंगलुरू का 64 प्रतिशत हिस्सा कावरी नदी बेसिन के बाहर है, ऐसे में बेंगलुरू को अतिरिक्त जल की आपूर्ति राष्ट्रीय जल नीति, हेलंसिकी नियम 1966 (Helsinki Rules, 1966) व हिस्सेदारी नियम (equitable apportionment) का उल्लंघन होगा। इस तर्क पर सर्वोच्च न्यायालय ने ‘वारंटेब्ल या न्यायोचित लोचशीलता’ (warrantable flexibility) की अवधारणा रखा। न्यायालय के मुताबिक बेसिन व जल की हिस्सेदारी जगह व वहां की आबादी के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिये।
- न्यायालय के मुताबिक कावेरी विवाद ट्रिब्यूनल ने कर्नाटक के घरेलू और औद्योगिक जल के उपयोग के बड़े हिस्से में यह कहते हुए कटौती कर दी थी कि कावेरी बेसिन में बेंगलुरु शहर का सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा आता है। ट्रिब्यूनल ने अनुमान लगाया था कि बेंगलुरू अपनी 50 फीसद पेयजल आवश्यकता भूजल से पूरा करता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सही माना। न्यायालय के मुताबिक टिब्यूनल पेयजल को सर्वाधिक प्राथमिकता दिए जाने के सिद्धांत की उपेक्षा की है। इसी आधार पर न्यायालय ने कर्नाटक को 14.75 टीएमसी पानी और देने का आदेश दिया।
- आधारः सर्वोच्च न्यायालय ने जल में हिस्सेदारी के लिए पेयजल की आवश्यकता को सर्वाधिक अहमियत प्रदान किया। पेयजल की आवश्यकता, खासकर बंगलुरू की आवश्यकता के मद्देनजर कर्नाटक को अधिक जलराशि देने का निर्णय किया गयाा। न्यायालय ने यह भी कहा कि अंतरराज्यीय नदी जल राष्ट्रीय संपत्ति है जिस पर काोई एक राज्य अपना अधिकार नहीं जता सकता। न्यायालय का यह भी मानना था कि राष्ट्रीय जल योजना के लागू होने के पश्चाात कोई भी राज्य किसी ऐसी नदी पर अपना एकछत्र अधिकार नहीं जता सकता, जो शुरू होने के बाद किसी दूसरे राज्य से गुजरती है।
- विवाद के पक्षः कावेरी जल विवाद चार राज्यों क्रमशः तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल व पुडुचेरी के बीच है। लेकिन मुख्य विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच ही है।
कावेरी जल विवाद टाइमलाइन
- 1892ः मद्रास प्रेसिडेंसी तथा मैसूर देशी राज्य ने कावेरी नदी जल बंटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर किया।
- 1924ः मैसूर को कान्नांबदी गांव में बांध बनाने की अनुमति मिली। यह समझौता 40 सालों के लिए वैध माना गया। इसी आधार पर कृष्णाराज सागर बांध बनाया गया। 1931 में कृष्णाराज सागर बांध व 1934 में मेट्टूर बांध बनकर तैयार हुआ।
- मई 1990 सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल गठित करने का आदेश दिया। 2 जून को न्यायमूर्ति चित्तातोष मुखर्जी की अध्यक्षता में ट्रिब्यूनल का गठन हुआ।
- 5 फरवरी, 2007ः ट्रिब्यूनल ने अपना अंतिम आदेश पारित किया। अंतिम आदेश के तहत तमिलनाडु को 419 टीएमएसी, कर्नाटक को 270 टीएमसी, केरल को 30 टीएमसी तथा पुडुचेरी को 7 टीएमसी पानी देने का आदेश दिया।
- 12 फरवरी, 2007ः ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ कर्नाटक में विरोध प्रदर्शन
- 19 फरवरी, 2013ः केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पश्चात ट्रिब्यूनल के अंतिम निर्णय को लागू करने का आदेश दिया।
- 28 मई, 2013ः कर्नाटक द्वारा आदेश का पालन नहीं किये जाने पर तमिलनाडु ने 2480 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किया।
- 13 मई, 2014ः न्यायमूर्ति बी. एस.चौहान को ट्रिब्यूनल का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
- 16 फरवरी, 2018ः सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक को अतिरिक्त 14.75 टीएमसी पानी देने का आदेश दिया।
कावेरी नदी के बारे में
- कावेरी नदी की उत्पति कर्नाटक के कोडागु जिला स्थित पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पहाड़ी से होती है। जिस जगह से इसकी उत्पति होती है उसे तालाकावेरी कहते हैं।
- इसे दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है।
- यह तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।