बेस रेट को एमसीएलआर से जोड़ने का भारतीय रिजर्व बैंक का आदेश

  • भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों द्वारा दिये गये कर्ज के आधार दर या बेस रेट को ‘फंड की सीमांत लागत आधारितऋण दर यानी एमसीएलआर (MCLR) से जोड़ने का निर्देश दिया है। यह आदेश 1 अप्रैल, 2018 से लागू हो जाएगा। इस आदेश का मतलब यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जब भी एमसीएलआर में कमी की जाएगी या बढ़ायी जाएगी, बेस रेट उसी अनुरुप घटेगी-बढ़ेगी।
  • ऐसी आशा की गई थी कि एमसीएलआर के लागू होने से बैंक द्वारा पूर्ववर्ती कर्ज भी एमसीएलआर के संगत हो जाएंगे परंतु ऐसा हुआ नहीं। उदाहरण के तौर पर जनवरी 2017 में जब बैंकों के पास काफी फंड हो गये थे तब एमसीएलआर दर में 80 से 90 बेसिस प्वाइंट (एक बेसिस प्वाइंट 0.1 प्रतिशत के बराबर होता है) की कमी कर दी परंतु बेस रेट में कोई कमी नहीं की गई जिससे अधिकांश छोटे कर्जदार निम्न ब्याज दर का लाभ नहीं उठा पाये।
  • भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार मौद्रिक नीतियों में जतायी गयी लगातार चिंताओं के बावजूद बैंकों का अधिकांश कर्ज बेस रेट से ही जुड़ा रहा। चूंकि एमसीएलआर, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीतिगत दरों के अधिक नजदीक होती है और सामान्यतः उसी के अनुुरुप घटती-बढ़ती है, इसलिए बेंचर्माक रेट के तरीकों को समरुप रखने हेतु बेस रेट को एमसीएलआर से जोड़ने का आदेश भारतीय रिजर्व बैंक ने दिया है।
  • बेस रेट को एमसीएलआर से जोड़ने से ब्याज दर कम होने पर पहले के कर्जदार निम्न ब्याज दर का भी लाभ उठा पाएंगे। हालांकि कुछ आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक का आदेश उपयुक्त समय पर नहीं आया है क्योंकि चार वर्षों के निम्न ब्याज दर वाली स्थिति के पश्चात ब्याज दरें बढ़ने का माहौल बन रहा है।




क्या होता है बेस रेट?

  • बेस रेट (Base Rate) की पंरपरा 2010 में आरंभ हुयी थी। बेस रेट वह न्यूनतम ब्याज दर है जिस पर कोई बैंक अपने पसंदीदा ग्राहकों को कर्ज देता है। छोटे कर्जदारों के बल पर बड़े-बड़े कॉर्पोरेट को कम से कम ब्याज दर पर कर्ज देने की अनुचित व्यवस्था से बचने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बेस रेट की शुरुआत की। इस रेट से कम ब्याज दर पर कर्ज नहीं दिया जा सकता। हालांकि बैंकों ने इससे भी बचने का तरीका खोज निकाला।

क्या है एमसीएलआर?

    • इसे (marginal cost of funds based lending rate: MCLR) भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर श्री रघुराम राजन ने 1 अप्रैल, 2016 से लागू किया गया था। ब्याज दर की पूर्ववर्ती सीमाओं को दूर करने के लिए एमसीएलआर आरंभ किया गया। इसके तहत बैंकों को कर्ज की अवधि के हिसाब से बहु-ब्याज दर अपनाने को कहा गया। इसमें एक निश्चित अवधि के लिए निश्चित ब्याज की दर निर्धारित की गई। एमसीएलआर के तहत बैंकों को प्रत्येक माह समीक्षा कर ओवरनाइट, एक माह, तीन माह, छह माह, एक साल, दो साल, तीन सालों के लिए ब्याज दरें निर्धारित करनी होती है।



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