समाचारः भारत के चुनाव आयोग ने 19 जनवरी, 2018 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को ‘लाभ का पद’ धारण करने की शिकायत के पश्चात उनकी सदस्यता समाप्ति के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश कर दिया।
राष्ट्रपति के पास क्या है विकल्पः भारतीय संविधान के अनुसार चुनाव आयोग की सिफारिश को मानने के लिए भारत का राष्ट्रपति बाध्य है। इसका मतलब है कि आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता समाप्त हो जाएगी और विधानसभा के खाली हुये 20 सीटों के लिए फिर से उपचुनाव होंगे।
आम आदमी पार्टी के पास क्या हैं विकल्पः दिल्ली की आम आदमी पार्टी के लिए अभी सभी दरबाजे बंद नहीं हुये हैं। वह दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील कर सकती है और वहां भी राहत नहीं मिलने पर वह सर्वोच्च न्यायालय जा सकती है। इन सब प्रक्रिया में काफी वक्त लग सकता है। फिलहाल आम आदमी पार्टी ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रूख किया है जहां उसे अंतरिम राहत नहीं मिली है।
पूरा मामला क्या हैः दरअसल 13 मार्च, 2015 को केजरीवाल सरकार ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया। आप पार्टी ने यह भी कहा कि संसदीय सचिव का पद लाभ का पद नहीं है क्याेंकि उन्हें किसी प्रकार का वेतन या भत्ता नहीं मिलेगा। दिल्ली सरकार के इस निर्णय के खिलाफ अधिवक्ता प्रशांत पटेल ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर दी। इसके पश्चात 24 जून, 2018 को दिल्ली विधानसभा ने एक विधेयक पारित किया जिसमें संसदीय सचिव के पद को ‘लाभ के पद’ से बाहर कर दिया गया और इस कानून को पूर्वप्रभावी कानून के रूप में लागू किया। किंतु तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 13 जून, 2016 को इस विधेयक को मंजूरी देने से मना कर दिया। उधर प्रशांत पटेल ने इन 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए राष्ट्रपति के पास आवेदन दिया। राष्ट्रपति ने इसे चुनाव आयोग को विचार हेतु अग्रसारित कर दिया। वहीं दूसरी ओर 8 सितंबर, 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार द्वारा 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को अवैध ठहरा दिया। एक विधायक जरनैल सिंह ने पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अपनी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था, इसलिए चुनाव आयोग ने 19 जनवरी, 2018 को 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की।
क्या हैं कानूनी प्रावधानः भारत के संविधान में संसद सदस्यों एवं राज्य विधान सभा के सदस्यों को कतिपय मामलाें में निरर्हित करने का प्रावधान है। ये प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. अनुच्छेद 102 (1)(अ) के अनुसार संसद के दोनों सदनों के किसी सदस्य द्वारा अन्य के अलावा लाभ का पद धारण करने पर उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
2. अनुच्छेद 103 के अनुसार यदि सदस्यों की निर्रहता संबंधी कोई प्रश्न पैदा होता है तो इस मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा जो चुनाव आयोग से सुझाव प्राप्त करेगा।
3. अनुच्छेद 191(1)(अ) के अनुसार राज्य विधानसभा या विधानपरिषद् का कोई सदस्य भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ का कोई पद धारण करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
4. चूंकि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है इसलिए लाभ का पद का प्रावधान ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एक्ट 1991’ में किया गया है। दिल्ली एमएलए (निरर्हता के माध्यम से हटाना) एक्ट 1997, के तहत उन पदों का उल्लेख है जो लाभ का पद में शामिल हैं परंतु उनमें संसदीय सचिव पद शामिल नहीं है।
क्या है लाभ का पदः भारत के संविधान में लाभ के पद के आधार पर सदस्यता समाप्ति का उल्लेख तो है परंतु लाभ के पद की परिभाषा नहीं दी गई है। इसके लिए विभिन्न न्यायिक निर्णयों का सहारा लिया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 1985 में यू.सी. रमन बनाम पीटीए रहिम व अन्य मामले में कहा कि धन संबंधी कोई भी फायदा ‘लाभ का पद’ है। दरअसल विभिन्न न्यायिक निर्णयों में लाभ के पद को वित्तीय व अन्य फायदों से जोड़कर देखा गया है।
पूर्ववर्ती उदाहरणः वर्ष 2006 में यूपीए की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी पर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् (एनएसी) के अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण करने के चलते लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना पड़ा। इसी तरह जया बच्चन को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् में पद धारण करने के चलते राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना पड़ा।