भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक कर्ज डिफॉल्ट की समस्या से निजात पाने के लिए पहले के दिशा-निर्देशों में व्यापक परिवर्तन करते हुये इसे और सख्त कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने बैड लोन या दबाब वाले कर्जों की समस्या के समाधन के लिए 12 फरवरी, 2018 को नया फ्रेवमर्क जारी किया। संशोधित फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
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- बैंक अब किसी भी स्थिति में दबाव ग्रस्त कर्ज को एनपीए में डालने और वसूली के लिए इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) 2016 के तहत कार्रवाई को टाल नहीं सकेंगे।
- दबाव वाले खातों के समाधान के संस्थागत मेकेनिज्म के रूप ‘संयुक्त कर्जदार तंत्र’ (Joint Lenders’ Forum: JLF) को समाप्त कर दिया गया है।
- बैंकों को कर्ज खातों में से दबाव वाले खातों की तुरंत पहचान करनी होगी और दबाव वाले कर्ज को ‘स्पेशल मेंसन अकाउंट’ (special mention accounts: SMA) के रूप में वर्गीकृत करना होगा
- भारतीय रिजर्व बैंक ने फंसे कर्जाे के समाधान के लिए वर्तमान में चल रहे कई नियमों को समाप्त कर दिया है जिनमें एस4ए स्कीम भी शामिल है।
- अब किसी कर्ज डिफॉल्ट के मामले में बैंकों को 180 दिन के भीतर उसका समाधान निकालना होगा। ऐसा नहीं होने की स्थिति में 2000 करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज डिफॉल्ट के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया आरंभ करनी होगी।
- नए नियम के तहत 2,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा के लोन डिफॉल्ट के मामलों में बैंक अधिकारियों को 180 दिन के भीतर समाधान की योजना तैयार करनी होगी। ऐसा नहीं होने पर उसे दिवालिया प्रक्रिया में ले जाना होगा।
- बैंकों को 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक के सभी कर्जदारों की सूचना भारतीय रिजर्व बैंक के ‘सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इन्फॉर्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट’ (Central Repository of Information on Large Credits: CRILC) को प्रत्येक शुक्रवार को देनी होगी।