कर्नाटक उच्च न्यायालय में हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायाधीशों के समक्ष प्रश्न उठाया गया कि क्या राज्य इस आधार पर हिजाब प्रतिबंध को उचित ठहरा सकता है कि यह ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ यानी पब्लिक आर्डर (Public Order) का उल्लंघन करता है।
- उल्लेखनीय है कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के तहत 5 फरवरी, 2022 को जारी आदेश के अनुसार, “एकता” और “अखंडता” के साथ “सार्वजनिक व्यवस्था” वह तीसरा कारण है जिनके आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं को हेडस्कार्फ़ पहनने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
क्या है ‘पब्लिक आर्डर’?
- ‘पब्लिक आर्डर’ उन तीन आधारों में से एक है जिन पर राज्य धर्म की सीमित को प्रतिबंधित कर सकता है। सार्वजनिक व्यवस्था’, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य मौलिक अधिकारों को सीमित करने के आधारों में से एक है।
- संविधान का अनुच्छेद 25 सभी व्यक्तियों को समान रूप से अंत:करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र रूप से धर्म के आचरण, अभ्यास और प्रचार के अधिकार के हकदार हैं लेकिन इन्हें सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक आर्डर), नैतिकता (morality) और स्वास्थ्य (health) के आधार पर सीमित किया जा सकता है।
- पब्लिक आर्डर को आम तौर पर सार्वजनिक शांति और सुरक्षा के बराबर माना जाता है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 के अनुसार, पब्लिक आर्डर के पहलुओं पर कानून बनाने की शक्ति राज्यों के पास है।
- राम मनोहर लोहिया बनाम बिहार राज्य (1965) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘पब्लिक आर्डर’ का हवाला तभी दिया जाये जब किसी कार्रवाई से समुदाय या जनता का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होने की आशंका है।