समाचारों में क्यों ?
11 अगस्त, 2020 को सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने हिंदू महिला के अधिकार को संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में विस्तारित किया और पुरुष उत्तराधिकारियों के बराबर शर्तों पर उसे पैतृक संपत्ति का वारिस घोषित किया ।
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005
-सर्वोच्च न्यायालय पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 (Hindu Succession (Amendment) Act, 2005) पर निर्णय सुनाया, जिसने हिंदू महिलाओं को पुरुष वारिस के रूप में कोपारसनर या संयुक्त कानूनी वारिस होने का अधिकार दिया।
-हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 की धारा 6 में वर्ष 2005 में संशोधन कर बेटी को भी जन्म से संपत्ति का उत्तराधिकार माना गया ठीक उसी रूप में जैसे पुत्र को प्राप्त है।
इसे क्यों चुनौती दी गई?
हालांकि 2005 के संशोधन के द्वारा महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार दिए गए थे, फिर भी कई मामलों में सवाल उठाए गए कि क्या यह संशोधन कानून पूर्वव्यापी (संशोधन वर्ष से पहले) रूप से लागू होता है, और क्या महिलाओं के अधिकार पिता की जीवित स्थिति पर निर्भर करता है जिनके माध्यम से वे विरासत में सम्पत्ति प्राप्त करेंगे।
–प्रकाश वी फुलवती (2015) मामले में, न्यायमूर्ति ए के गोयल की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि 2005 के संशोधन का लाभ केवल उन पुत्रियों को प्राप्त होगा जिनके पिता 9 सितंबर, 2005 को जीवित थे।
-फरवरी 2018 में, 2015 के फैसले के विपरीत, न्यायमूर्ति ए के सीकरी की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा कि 2001 में मरने वाले किसी पिता की संपत्ति में भी हिस्सेदारी उनकी बेटियों को मिलेगी।
इन विरोधाभासी व्याख्याओं के पश्चात किसी बड़ी बेंच द्वारा व्याख्या किया जाना आवश्यक हो गया था ।
क्या है नया निर्णय ?
-जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने फैसला सुनाया कि पैतृक संपत्ति के लिए एक संयुक्त उत्तराधिकारी के रूप में एक हिंदू महिला का अधिकार जन्म से है और यह इस पर निर्भर नहीं करता है कि 2005 में कानून लागू होने पर उसके पिता जीवित थे या नहीं।
चूँकि विरासत का निर्णय जन्म से होता है, इसलिए यह जरूरी नहीं है कि संपत्ति के मालिक के रूप में पिता 9-9-2005 को जीवित रहे ।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 क्या है?
हिंदू कानून के मिताक्षरा स्कूल को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया था।
-यह उत्तराधिकार और संपत्ति की विरासत को नियंत्रित करता है लेकिन सम्पत्ति का कानूनी वारिस के रूप में मान्यता केवल पुरुषों को देता है ।
यह बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायियों पर भी लागू होता है क्योंकि वे भी इस कानून के उद्देश्यों के लिए हिंदू माने जाते हैं।
यह कानून मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी धर्म पर लागू नहीं होता है।
मिताक्षरा स्कूल बनाम दायभाग स्कूल (Mitakshara school Vs Dayabagha School)
-मिताक्षरा विधि याज्ञवल्क्य स्मृति पर आधारित है और इसके लेखक 12वीं शताब्दी में पश्चिम चालुक्य साम्राज्य के प्रमुख विद्वान विज्ञानेश्वर हैं।
-मिताक्षरा कानून में जन्म के आधार पर उत्तराधिकार निश्चय होता है और पैतृक संपत्ति में केवल पुत्र को अधिकार दिया गया है।
-मिताक्षरा के नियम असम एवं बंगाल को छोड़कर शेष जगहों पर लागू होता था।
-हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 मिताक्षरा पर ही आधारित है।
-दायभाग विचारधारा के लेखक बंगाल के 12वीं शताब्दी के जिमूतिवाहन हैं।
-दायभाग कानून में संपत्ति के उत्तराधिकार का निर्णय उस व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात होता था जिसके अधिकार में यह संपत्ति होती थी।
-दायभाग विधि का बंगाल और असम में अनुपालन किया जाता था।
(Source: Indian Express and Shodhganga)
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