सर्वोच्च न्यायालय ने 5 मई 2021 को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को खारिज कर दिया ।
- न्यायालय ने महाराष्ट्र में मराठों को नौकरी और शिक्षा में दिया जाने वाला आरक्षण असंवैधानिक ठहराया। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा तय करने वाले 1992 के इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग भी ठुकरा दी।
- न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं को कोटा देने वाले महाराष्ट्र के कानून में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है। मराठा आरक्षण देते समय 50 फीसद आरक्षण का उल्लंघन करने का कोई वैध आधार नहीं था।
- निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।
- उल्लेखनीय है कि बांबे हाई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था। इसी को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। उच्च न्यायालय ने, जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए, यह माना था कि 16 प्रतिशत आरक्षण उचित नहीं था और कोटा रोजगार में 12 प्रतिशत से अधिक और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 13 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।