केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने 10 अगस्त को नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 36वीं बैठक की अध्यक्षता की। इस अवसर पर केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आज हम सबके लिए बहुत ही हर्ष का विषय है कि हमने समिति के 10वें प्रतिवेदन को राष्ट्रपति महोदय के पास भेजने की मंजूरी दे दी है।
गृह मंत्री ने कहा कि बहुत सारे देशों की न लिपि बची है और न ही भाषा बची है, लेकिन मैं गर्व के साथ कह रहा हूँ कि आज़ादी के बाद जितनी बोलियाँ थी उनको भी हमने संरक्षित और संवर्धित रखा है और जितनी भाषाएँ थीं उनको भी बचा कर रखा है। साथ ही जितनी लिपियाँ थीं वे भी देवनागरी के तत्वाधान में आगे बढ़ रही हैं। इससे देश की एकता और अखंडता में कोई दरार नहीं पड़ी बल्कि स्थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश को एक करने का काम किया है। इस वजह से ही मेरे विचार से राजभाषा समिति संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति है।
श्री अमित शाह ने समिति के सदस्यों से अनुरोध करते हुए कहा कि हमें एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिसमे राजभाषा हिन्दी का विकास सहज रूप से स्थानीय भाषाओं की सखी के रूप में होना चाहिए। उन्होने कहा कि यह थोपने से नहीं होगा, अगर थोपा होता तो हिन्दी अस्वीकार और कालबाह्य हो गई होती। हिन्दी अगर कालबाह्य नहीं हुई है तो इसका यही कारण है की हमने इसे कभी थोपने का प्रयास नहीं किया। जैसे गुजराती और हिन्दी व कन्नड और हिन्दी व अन्य भाषाओँ के बीच स्पर्धा नहीं हो सकती क्योंकि ये दोनों सखियाँ या बहनें हैं। इस भाव के साथ अगर हम आगे बढ़ते हैं तभी हम इस कार्य को आगे बढ़ा पाएंगें।