लोक अदालत द्वारा पारित कोई समझौता डिक्री नहीं- सर्वोच्च न्यायालय

हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि लोक अदालत द्वारा पारित कोई समझौता डिक्री (न्यायिक निर्णय) नहीं है।

  • न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने अपने फैसले में यह टिप्पणी करते हुए कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 20 के तहत लोक अदालत द्वारा पारित कोई आदेश मुआवजे के पुनर्निर्धारण का आधार नहीं हो सकता जैसा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत धारा 28 ए के तहत विचार किया गया है।
  • खंडपीठ ने थॉमस जॉब बनाम थॉमस 2003 (3) KLT 936 में केरल हाईकोर्ट के फैसले की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिसमें आदेश दिया गया था कि लोक अदालत की धारा 21 में की कोई भी व्याख्या के बावजूद लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड (आदेश) को किसी सिविल कोर्ट द्वारा पारित समझौता डिक्री माना जा सकता है।
  • अदालत ने भी माना कि धारा 20 के तहत लोक अदालत का अधिकार क्षेत्र किसी मामले में पक्षों के बीच विवादों के निपटारे की सुविधा प्रदान करना भर है।

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