- आईआईटी भुवनेश्वर परिसर में प्रधानमंत्री ने 24 दिसंबर, 2018 को पाइका विद्रोह पर स्मारक टिकट और सिक्का जारी किया। पाइका विद्रोह ओडिशा में 1817 में ब्रिटिश राज के खिलाफ किया गया था। उत्कल विश्व-विद्यालय भुवनेश्वर में पाइका विद्रोह पर पीठ की स्थापना किये जाने की घोषणा की गयी।
- ललितगिरी संग्राहलय का उद्घाटन: प्रधानमंत्री ने ओडिशा में स्तूप, विहार और भगवान बुद्ध की छवियों सहित पुरातात्विक महत्व वाले प्रसिद्ध बौद्ध केन्द्र ललितगिरी में ललितगिरी संग्राहलय का उद्घाटन किया।
- आईआईटी भुवनेश्वर: श्री नरेन्द्र मोदी ने आईआईटी भुवनेश्वर के परिसर को राष्ट्र को समर्पित किया। उन्होंने भुवनेश्वर में नये ईएसआईसी अस्पताल का भी उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने पाइपलाइन और सड़क परियोजनाओं की आधार शिला रखी।
पाइका विद्रोह
- 1857 का स्वाधीनता संग्राम जिसे सामान्य तौर पर भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है उससे भी पहले 1817 में ओडिशा में हुए पाइका बिद्रोह ने पूर्वी भारत में कुछ समय के लिये ब्रिटिश राज की जड़े हिला दी थीं।
- मूल रूप से पाइका ओडिशा के उन गजपति शाषकों के किसानों का असंगठित सैन्य दल था जो युद्ध के समय राजा को सैन्य सेवायें मुहाये कराते थे और शांतिकाल में खेती करते थे। इन लोगों ने 1817 में बक्शी जगबंधु बिद्याधर के नेतृत्व में ब्रिटिश राज के विरुद्ध बगावत का झण्डा उठा लिया।
- खुर्दा के शासक परंपरागत रूप से जगन्नाथ मंदिर के संरक्षक थे और धरती पर उनके प्रतिनिधि के तौर पर शासन करते थे। वे ओडिशा के लोगों की राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का प्रतीक थे। ब्रिटिश राज ने ओडिशा के उत्तर में स्थित बंगाल प्रांत और दक्षिण में स्थित मद्रास प्रांत पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने 1803 में ओडिशा को भी अपने अधिकार में कर लिया था। उस समय ओडिशा के गजपति राजा मुकुंददेव द्वितीय अवयस्क थे और उनके संरक्षक जय राजगुरु द्वारा किये गये शुरुआती प्रतिरोध का क्रूरता पूर्वक दमन किया गया और जयगुरु के शरीर के जिंदा रहते हुये ही टुकड़े कर दिये गये।
- कुछ वर्षों के बाद गजपति राजाओं के असंगठित सैन्य दल के वंशानुगत मुखिया बक्शी जगबंधु के नेतृत्व में पाइका विद्रोहियों ने आदिवासियों और समाज के अन्य वर्गों का सहयोग लेकर बगावत कर दी।
- पाइका विद्रोह 1817 में आरंभ हुआ और बहुत ही तेजी से फैल गया। हालांकि ब्रिटिश राज के विरुद्ध विद्रोह में पाइका लोगों ने अहम भूमिका निभायी थी लेकिन किसी भी मायने में यह विद्रोह एक वर्ग विशेष के लोगों के छोटे समूह का विद्रोह भर नहीं था। घुमसुर जो कि वर्तमान में गंजम और कंधमाल जिले का हिस्सा है वहां के आदिवासियों और अन्य वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभायी।
- वास्तव में पाइका विद्रोह के विस्तार का सही अवसर तब आया जब घुमसुर के 400 आदिवासियों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत करते हुये खुर्दा में प्रवेश किया। खुर्दा, जहां से अंग्रेज भाग गये थे, वहां की तरफ कूच करते हुये पाइका विद्रोहियों ने ब्रिटिश राज के प्रतीकों पर हमला करते हुये पुलिस थानों, प्रशासकीय कार्यालयों एवं राजकोष में आग लगा दी।
- पाइका विद्रोहियों को कनिका, कुजंग, नयागढ़ और घुमसुर के राजाओं, जमींदारों, ग्राम प्रधानों और आम किसानों का समर्थन प्राप्त था। यह विद्रोह बहुत तेजी से प्रांत के अन्य इलाकों जैसे पुर्ल, पीपली और कटक में फैल गया। विद्रोह से पहले तो अंग्रेज चकित रह गये लेकिन बाद में उन्होंने आधिपत्य बनाये रखने की कोशिश लेकिन उन्हें पाइका विद्रोहियों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। बाद में हुई कई लड़ाइयों में विद्रोहियों को विजय मिली लेकिन तीन महीनों के अंदर ही अंग्रेज अंतत: उन्हें पराजित करने में सफल रहे।