ल्यूकेमिया से पीड़ित एक अमेरिकी मरीज HIV से ठीक होने वाली पहली महिला और तीसरी व्यक्ति बन गई है। उन्हें एक ऐसे डोनर से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट मिला, जिसमें एड्स के लिए जिम्मेदार वायरस की कुदरती प्रतिरोध क्षमता थी।
- वह महिला, जिसे ‘न्यूयॉर्क की रोगी’ कहा गया है, अब 14 महीने से इस वायरस से मुक्त है।
- मध्य आयुवर्ग की यह महिला श्वेत-अश्वेत माता पिता की संतान है। इस मामले को अमेरिका के डेनवर में हुई ‘कॉन्फ्रेंस ऑन रेट्रोवायरसऐंड ऑपर्चुनिस्टिक इंफेक्शंस’ में पेश किया गया।
- यह गर्भनाल रक्त (umbilical cord blood) स्टेम सेल से जुड़ा पहला मामला है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस्तेमाल की गयी यह प्रत्यारोपण तरीका , जिसमें गर्भनाल रक्त शामिल है, एचआईवी वाले अधिकांश लोगों के लिए उपयुक्त होने के लिए जोखिम भरा है।
- चयनित ट्रांसप्लांट कोशिकाओं में एक विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन होता है, जिसका अर्थ है कि वे एचआईवी वायरस से संक्रमित नहीं हो सकते हैं।
- उल्लेखनीय है कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की क्षमता वर्ष 2007 में भी दिखी जब टिमोथी रे ब्राउन एचआईवी से “ठीक” होने वाले पहले व्यक्ति बने थे। उनका एक ऐसे डोनर से ट्रांसप्लांट किया गया था जो कुदरती रूप से एचआईवी के लिए प्रतिरोधी था।
- गर्भनाल रक्त स्टेम सेल, पूर्व में इस्तेमाल की गई वयस्क स्टेम कोशिकाओं की तुलना में अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध है और इसके लिए दाता और प्राप्तकर्ता के बीच घनिष्ठ मेल की आवश्यकता नहीं होती है।
- न्यूयॉर्क के रोगी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया, जिसे हैप्लो-कॉर्ड ट्रांसप्लांट (haplo-cord transplant) के रूप में जाना जाता है, को वेइल कॉर्नेल टीम द्वारा विकसित किया गया था ताकि रक्त विकार वाले लोगों के लिए कैंसर उपचार विकल्पों का विस्तार किया जा सके, जिनमें ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA-(human leukocyte antigen) समान दाताओं की कमी है।
- वयस्क स्टेम कोशिकाओं की तुलना में, गर्भनाल रक्त अधिक अनुकूलनीय होता है, आमतौर पर कैंसर के इलाज में सफल होने के लिए एक करीबी एचएलए मिलान की कम आवश्यकता होती है और कम जटिलताएं होती हैं।
- जो मरीज इस परिक्षण में हिस्सा ले रहे हैं, पहले उनकी कीमोथेरेपी की जाती है ताकि कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सके। उसके बाद डॉक्टर विशेष जेनेटिक म्यूटेशन वाले व्यक्ति से स्टेमसेल लेकर उसे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार इस ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों में एचआईवी के प्रति रोधक क्षमता विकसित हो जाती है।