सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। न्यायालय ने कहा है कि जुर्म कितना भी खौफनाक क्यों ना हो, दोषी की मौत की सजा को कम किए जाने के विकल्पों पर न्यायाधीशों को विचार करना चाहिए।
मामला क्या था?
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय सात साल की एक बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में आया। एक व्यक्ति को 2015 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सात साल की एक बच्ची का बलात्कार और हत्या करने का दोषी पाया गया था।
- उस वक्त उस व्यक्ति की उम्र 33-34 साल थी। पहले निचली अदालत ने फिर अक्टूबर 2017 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के मौत की सजा के फैसले को सही ठहराया।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
- लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अलग रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आरोपी का बलात्कार और हत्या के लिए दोषी साबित होना को सही ठहराया लेकिन यह भी कहा उसकी मौत की सजा को कम जिए जाने के कई कारण है जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- फैसले को लिखने वाले न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि मौत की सजा अपराधियों को डराने का और कई मामलों में कड़ी कार्रवाई की समाज की मांग की प्रतिक्रिया के रूप में जरूर काम करती है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है।
- उन्होंने कहा कि सजा देने के सिद्धांतों (penology) का अब और विस्तार हो गया है और अब मानव जीवन के संरक्षण के सिद्धांत को भी अहमियत दी जाने लगी है ।
- अदालत के सामने आज मौत की सजा के विकल्प मौजूद हैं। यह भी कि जघन्य अपराध के दोषियों को मौत की सजा की जगह बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा भी दी जा सकती है।
मौत की सजा
- भारत उन 58 देशों में से एक है, जहाँ मौत की सजा अभी भी मौजूद है और हाल के दिनों में इसका इस्तेमाल किया गया है। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रोजेक्ट 39ए के अनुसार, भारत ने आजादी के बाद से लगभग 755 व्यक्तियों को फांसी दी है। इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 366 फांसी दी गई। साथ ही, राज्य की बरेली जिला जेल में 130 लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया है , जो देश की सभी जेलों में सबसे अधिक है। वहां अंतिम फांसी दी 24 सितंबर 1988 को दी गयी थी।
- वर्ष 1980 में, बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य में, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के लिए ‘दुर्लभ में दुर्लभतम’ (rarest of rare) का सिद्धांत दिया अर्थात अति दुर्लभ मामले में ही फांसी की सजा दी जानी चाहिए।