राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी)/साझा बहिस्राव शोधन संयंत्र (सीईटीपी), जल गुणवत्ता मॉनीटरिंग अवस्थिति, वनरोपण, घाट तथा शवदाहगृह,नदी फ्रंट विकास सहित गंगा नदी बेसिन से संबंधित सभी आंकड़ों के केन्द्रीय भंडार के लिए प्लेटफार्म प्रदान करने के साथ-साथ आयोजन निष्पादन में सुधार तथा परियोजना की निगरानी के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस-Geographic Information System: GIS) का उपयोग करता है।
यह एनएमसीजी को प्रदूषण उपशमन तथा नदी जीर्णोद्धार कार्यों में उसकी प्रभावशीलता में सुधार के लिए सहायता प्रदान करता है।
(ग) भारत सरकार,राज्यों को वित्तीय सहायता देकर गंगा नदी में प्रदूषण की समस्या के समाधान में राज्य सरकारों के प्रयासों में सहयोग कर रही है। भारत सरकार ने गंगा नदी के संरक्षण हेतु मई, 2015 में नमामि गंगे कार्यक्रम अनुमोदित किया है जिसका कुल परिव्यय 20,000 करोड़ रूपए है। नमामि गंगे कार्यक्रम एक विस्तृत कार्यक्रम है जिसमें कौशल बढ़ाकर,तालमेल बैठाकर तथा उन्हें और अधिक व्यापक एवं बेहतर समन्वित कार्यों के जरिए पूरक बनाकर पहले के और वर्तमान में चल रहे कार्यों को एकीकृत किया गया है।
उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में पिछले तीन वर्षों में गंगा की सफाई हेतु नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत निम्नलिखित उपाय किए गए हैं:-
- संपूर्ण और वैज्ञानिक ढंग से सीवरेज परियोजनाएं मंजूर करने के उद्देश्य से गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसे शहरों में उत्पन्न होने वाले सीवेज तथा सीवेज परिशोधन के बीच अन्तर का पता लगाने के लिए स्थिति का आकलन-अध्ययन किया गया।
- मौजूदा एसटीपी का पुनरूद्धार और उनका परिचालन एवं रखरखाव।
- राज्य सरकारों को पर्याप्त धनराशि की उपलब्धता सुनिश्चित करने,राज्य के हिस्से की राशि को प्राप्त करने में लगने वाले समय को कम करने के लिए संविदाओं का जल्दी अनुमोदन हो सके और परियोजनाओं का कुशल कार्यान्वयन हो,नमामि गंगे कार्यक्रम को 100 प्रतिशत केन्द्रीय योजना का कार्यक्रम बनाया गया है।
- एसटीपी का कार्य निष्पादन लम्बी अवधि तक सुनिश्चित करने के लिए उनके परिचालन और रखरखाव की अवधि को 5 वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष किया गया है।
- एनएमसीजी को एक प्राधिकरण बनाया गया तथा परियोजनाओं को जल्दी मंजूर करने तथा संविदा सौंपने के लिए वित्तीय शक्ति बढ़ाई गई; बुनियादी स्तर पर निर्माण कार्यों की प्रभावी निगरानी के लिए राज्य और जिला गंगा समितियां बनाई गईं।
- कम अनुकूल डिजाइन,परिचालन एवं रखरखाव के लिए सहायता की कमी तथा स्वामित्व के अभाव जैसे मसलों के समाधान के लिए परियोजनाओं का हाइब्रिड एन्यूटी मोड के तहत कार्यान्वयन । हाइब्रिड एन्यूटी मोड से एसटीपी का स्वामित्व और दीर्घकाल में उनकी स्वीकार्य निरन्तर निष्पादन के लिए विशेष जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
- एक शहर एक प्रचालकः- 13 शहरों नामतः कानपुर, इलाहाबाद, मथुरा, पटना, कोलकाता,हावड़ा-बल्ली-कमारहाटी-बारानगर और भागलपुर में मौजूदा एसटीपी को मंजूर किए गए एसटीपी के साथ एकीकृत किया जा रहा है और बेहतर जवाबदेही तथा निगरानी के लिए एक विशिष्ट ऑपरेटर के चयन हेतु हाइब्रिड एन्यूटी आधारित पीपीटी के तहत निविदा दी गई।
- परिशोधित अपशिष्ट जल के पुनःचक्रण और पुनःप्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है; भारतीय तेल निगम लिमिटेड से उनके मथुरा तेल शोधन कारखाने में परिशोधित अपशिष्ट जल के उपयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- नवीन प्रौद्योगिकियों और मॉड्युलर एसटीपी का प्रयोग करके नालों का परिशोधन।
- पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सहयोग से गंगा नदी के किनारे चिन्ह्ति किए गए गांवों में ग्रामीण स्वच्छता सुविधाओं का सृजन। गंगा के किनारे 4465 गांवों को खुले में मल त्याग मुक्त घोषित किया गया है।
- नदी की सतह और किनारों से ठोस अपशिष्ट की नियमित आधार पर सफाई के लिए नदी सतह सफाई कार्य शुरु किए गए हैं।
(घ) एनएमसीजी द्वारा उसके प्रारंभ अर्थात वित्त वर्ष 2011-12 से लेकर 2018-19 में 30 जून,2018 तक व्यय की गई राशि 4322.37 करोड़ रूपए है। नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत 22238.49 करोड़ रूपए की लागत पर 221 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। इन 221 परियोजनाओं में से 58 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 95 परियोजनाएं कार्यान्वयन के अधीन हैं। ब्यौरा इस प्रकार हैः-
- 3293.68 एमएलडी की कुल परिशोधन क्षमता (887.00 एमएलडी की पुनर्बहाली सहित) उपलब्ध कराने के लिए सीवरेज संरचनाओं के विकास और 4842.30 किमी. सीवरेज प्रणाली बिछाने के लिए 105 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं, जिनकी अनुमानित लागत 17485.11 करोड़ रूपए है,इनमें से 26 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं जिनसे 328.13 एमएलडी की नई एसटीपी क्षमता सृजित हुई है और 92 एमएलडी की एसटीपी क्षमता की पुनर्बहाली हुई है। इसके अलावा,769 एमएलडी की नई एसटीपी क्षमता के सृजन और 86 एमएलडी क्षमता की पुनर्बहाली के लिए 44 परियोजनाएं पूरा होने के उन्नत चरणों में हैं।
- मॉड्यूलर एसटीपी के माध्यम से नालों के विकेन्द्रीकृत परिशोधन के लिए एक परियोजना मंजूर की गई है जिसके अंतर्गत 20 नाले शामिल हैं।
- घाट, शवदाहगृह और नदी तट विकास (आरएफडी): घाट,शवदाहगृह विकास और नदी तट विकास के लिए 63 परियोजनाएं अनुमोदित की गई हैं। इनमें से 24 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। शेष परियोजनाएं चल रही हैं। चल रही परियोजनाओं में 54 घाट और 10 शवदाहगृह के कार्य पूरे हो चुके हैं।
- वाराणसी, बिठूर, कानपुर, इलाहाबाद,मथुरा-वृंदावन और हरिद्वार में घाट सफाई की परियोजनाएं मंजूर की गई हैं।
- 11 स्थानों नामतः दिल्ली, हरिद्वार, मथुरा-वृंदावन, गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, साहिबगंज,हावड़ा और नवद्वीप में नदी सतह की सफाई के लिए एक परियोजना मंजूर की गई है।
- जल गुणवत्ता निगरानी सहित सांस्थानिक विकास के लिए 14 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। एक परियोजना पूरी हो चुकी हैं और 7 चल रही हैं।
- कार्यान्वयन सहायता और अनुसंधान विकास के विषय में चार परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। एक परियोजना पूरी हो गई है और 1 चल रही है।
- जैव विविधता के संरक्षण और वृक्षारोपण के लिए 19 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। इनमें से 6 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 8 चल रही हैं।
- संयुक्त इकोलॉजिकल कार्यबल के लिए मंजूर परियोजना चल रही है।
- नालो के जैव उपचार के लिए 8 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं।
- गंगा नदी के किनारे स्थित ग्राम पंचायतों में शौचालय बनाने के लिए एक परियोजना।