कर्नाटक के उच्च न्यायालय ने 14 फरवरी को कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम, 2021 के उन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसमें मुद्रा को जोखिम में डालकर या अन्यथा ऑनलाइन गेम खेलने और खेलने की गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया था और इसमें शामिल लोगों को अपराधी बना दिया था।
- कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम 2021 की धारा 2, 3, 6, 8 और 9 के प्रावधानों को पूरी तरह से भारत के संविधान का उल्लंघन घोषित किया गया और तदनुसार इसे रद्द कर दिया गया।
- उच्च न्यायालय की बेंच ने सरकार को ऑनलाइन गेमिंग व्यवसाय और याचिकाकर्ताओं की संबद्ध गतिविधियों में हस्तक्षेप करने से भी रोक दिया, हालाँकि यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों के अनुसार ‘सट्टेबाजी और जुआ’ पर एक उपयुक्त कानून को प्रभवित नहीं करेगा।
- उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि कौशल के सभी खेलों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाली विधायी कार्रवाई आनुपातिकता के सिद्धांत (principle of proportionality) की अवहेलना करती है और अधिक सख्ती वाली है और इसलिए प्रकट मनमानी के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।
- उल्लेखनीय है कि 21 सितंबर, 2021 को, कर्नाटक राज्य विधायिका ने राज्य में जुए पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए कर्नाटक पुलिस अधिनियम, 1963 में संशोधन करने के लिए एक कानून पारित किया था। संशोधन अधिनियम 5 अक्टूबर, 2021 को लागू हुआ।
- याचिकाकर्ता गेमिंग फेडरेशन और कंपनियों ने तर्क दिया कि 1957 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, कौशल के प्रतिस्पर्धी खेल संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत संरक्षित व्यावसायिक गतिविधियाँ हैं।
क्या है आनुपातिकता का सिद्धांत (principle of proportionality)?
- आनुपातिकता का सिद्धांत (principle of proportionality) यह मानता है कि एक सार्वजनिक प्राधिकार (अथॉरिटी) को अपने विशेष लक्ष्यों और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने द्वारा उपयोग किये जाने वाले साधनों के बीच अनुपात की भावना बनाए रखनी चाहिए, ताकि उसकी कार्रवाई सार्वजनिक हितों को संरक्षित करने के क्रम में व्यक्तिगत अधिकारों को कम से कम प्रभावित करे।