हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन (Permanent Court of Arbitration) ने भारत के आयकर विभाग की 20,000 करोड़ रुपये की कर मांग के खिलाफ वोडाफोन समूह की याचिका के पक्ष में निर्णय दिया ।
- यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया और यहाँ तक की भारत की ओर से नियुक्त मध्यस्थ श्री रोड्रिगो ओरामूनो ने भी वोडाफोन के पक्ष में निर्णय दिया। निर्णय में चेतावनी भी दी गयी कि भारत की ओर से कर के लिए दबाव डालना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा।
- यह कर मामला वर्ष 2007 में वोडाफोन द्वारा हचिसन व्हैमपोआ के शेयर (हचिसन-एस्सार) के अधिग्रहण से संबधित है।
- भारत से बाहर हुए इस सौदे को लेकर कर आयकर विभाग ने वोडाफोन से 20,000 करोड़ रुपये का कर मांगा था।
- परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन के मुताबिक भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कर की मांग को खारिज किए जाने के बाद भी वोडाफोन से विथहोल्डिंग कर की मांग करना भारत और नीदरलैंड के बीच हस्ताक्षरित द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते के तहत निष्पक्ष व्यवहार के खिलाफ है और यह समझौते की धारा 4 (1) का उल्लंघन है।
- उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2012 में कर को अनुचित बताते हुये वोडाफोन के पक्ष में निर्णय दिया था। इसके पश्चात तत्कालीन वित्त मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी ने संसद् में एक कानून पास कर कर को वर्ष 1962 से लागू कर दिया। यानी वोडाफोन को विदहोल्डिंग टैक्स चुकाने के लिए बाध्य किया गया। विदहोल्डिंग टैक्स से मतलब है कि कानून को बनाने से पहले से लागू करना।
- आर्बिट्रेशन का यह भी कहना था की वोडाफोन भारत में अपने मोबाइल कारोबार में किए गए निवेश के संदर्भ में द्विपक्षीय निवेश करार के अनुरूप उचित और समान व्यवहार का हकदार है। भारत द्वारा इसके अनुपालन की अवहेलना इसकी अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही से जुड़ी होगी।
- परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन ने वोडाफोन को कानूनी खर्च के लिए करीब 4.32 लाख पौंड का भुगतान करने का भी आदेश दिया।
- आयकर विभाग ने वर्ष 2007 में पूंजीगत लाभ कर मद में 7,999 करोड़ रुपये की मांग की थी, जो 2016 में ब्याज और जुर्माना जोड़कर 22,100 करोड़ रुपये हो गया था।
- हालांकि भारत सरकार का मानना है कि कर संबंधी विवाद भारत-नीदरलैंड के द्विपक्षीय निवेश संवद्र्घन करार के दायरे में नहीं आता है और यह निर्णय भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत आता है।
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