राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्लू) ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत किया है, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के उस फैसले को रद्द कर दिया गया है,जिसमें कहा गया था कि यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offences Act: POCSO) अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न अपराध के लिए त्वचा-से-त्वचा (skin-to-skin” contact) का संपर्क आवश्यक है।
- आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस मामले में शीर्ष अदालत का फैसला महिलाओं और बच्चों के लिए कानूनी और संवैधानिक सुरक्षा को कायम रखेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में यौन इरादा (sexual intent) महत्वपूर्ण है और इसे अधिनियम के दायरे से अलग नहीं किया जा सकता है।
- शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून का उद्देश्य, अपराधी को कानून से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसे त्वचा-से-त्वचा (skin-to-skin” contact) के संपर्क तक सीमित रखने के लिए शारीरिक संपर्क का संकीर्ण अर्थ देना पॉक्सो अधिनियम के उद्देश्य को विफल कर देगा और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- बेंच ने कहा कि धारा 7 में सबसे महत्वपूर्ण घटक अपराधी का “यौन इरादा” था, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क ()। धारा 7 में कहा गया है कि “जो कोई भी यौन इरादे से बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को स्पर्श के लिए मजबूर करता है, या यौन इरादे से कोई अन्य कार्य करता है, जिसमें यौन सम्बन्ध के बिना शारीरिक संपर्क (physical contact without penetration) शामिल है, यौन उत्पीड़न माना जायेगा ।
- एनसीडब्लू ने 4 फरवरी, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक एसएलपी दाखिल की थी, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी।एसएलपी में कहा गया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला देश में महिला सुरक्षा के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा।
- पोक्सो अधिनियम 2012 को बच्चों के हित और भलाई की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिए लागू किया गया था।
- बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) 2012 के अधिनियम, 14 नवम्बर, 2012 से लागू हुआ। इसके अंतर्गत बालक और बालिकाओं दोनों के लिए यौन दुष्कर्म और शोषण से संरक्षण का प्रावधान है।
- यह अधिनियम बच्चे को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है और बच्चे का शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिए हर चरण को ज्यादा महत्व देते हुए बच्चे के श्रेष्ठ हितों और कल्याण का सम्मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव नहीं है।
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