मियावाकी पद्धति से शहरी वन का विकास

वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर और इस संबंध में सामुदायिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग स्थित भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कार्यालय ने कार्यालय पार्क में एक शहरी वन स्थापित करने के लिए कदम उठाए हैं।

कार्यालय पार्क में सीमित क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इसके गहन वनीकरण के लिए स्थानीय सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। इस वन में स्थानीय पेड़ों को लगाया गया है जो तीन आयामी, बहुस्तरीय समुदाय के हैं और जो एकल-स्तरीय लॉन की हरियाली के सतह क्षेत्र का 30 गुना है। प्राकृतिक आपदाओं से बचाने और पर्यावरण के संरक्षण के लिए इस वन की क्षमता 30 गुना से अधिक है।

शहरी वन शहरों के फेफड़े हैं और ऑक्सीजन बैंक तथा पर्यावरण से कार्बन घटाने के तंत्र के रूप में काम करते हैं। इस वन के निर्माण में मियावाकी तरीके का इस्तेमाल किया गया है जिससे तापमान में 14 डिग्री तक कमी और नमी में 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी करने में मदद मिल सकती है।

मियावाकी पद्धति’

जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा आविष्कार की गयी और उनके नाम पर रखी गयी ‘मियावाकी पद्धति’ (Miyawaki method) वन लगाने की एक अनूठी तकनीक है। इसके तहत, दर्जनों देशी प्रजातियों को एक ही क्षेत्र में लगाया जाता है, एक-दूसरे के करीब, जो यह सुनिश्चित करता है कि पौधों को केवल ऊपर से सूर्य का प्रकाश प्राप्त हो, और ये बग़ल की तुलना में ऊपर की ओर बढ़ते हैं ।

शहरी वन

शहरी वन एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र है जो पक्षियों,मधुमक्खियों,तितलियों और ऐसे ही अन्य सूक्ष्म जीव-जंतुओं के लिए निवास स्थान बन सकता है। ये फसलों और फलों के परागण के लिए और एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करने के लिए आवश्यक हैं।

एक घने जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र को ऐसे क्षेत्र में बनाया गया है जो आकार में 1 एकड़ से थोड़ा ही अधिक है। बहु-स्तरीय वनों में झाड़ियां,छोटे से मध्यम आकार के पेड़ और लम्बे पेड़ होते हैं जिन्हें बड़ी सावधानी से परिधीय और कोर प्लांट समुदायों के रूप में लगाया जाता है।

सिंचाई और निराई-गुड़ाई सहित न्यूनतम रख-रखाव के साथ यह शहरी वन अक्टूबर,2021 तक स्वत: टिकाऊ हो जाएगा।

दुर्लभ देशी प्रजाति

इस शहरी वन में लगाए गए कुछ दुर्लभ देशी प्रजातियों में एनोगेइसस पेंडुला (ढोंक), डायोस्पायरस कॉर्डिफ़ोलिया (बिस्तेंदु), एह्रेतिया लाएविस (चामरोड), राइटिया टिंक्टोरिया (दूधी), मित्राग्ना परविफ़ोलिया (कैम), ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (पलाश), प्रोसोपिस सिनेरेरिया (खेजरी), क्लेरोडेंड्रम फ़्लोमिडिस (अरनी), ग्रेविआ एशियाटिका (फालसा),फीनिक्स सिल्विस्ट्रिस (खजूर) और हेलिसटेरेस इसोरा (मरोडफाली) शामिल हैं। पौधों की ये चुनी गई प्रजातियां दिल्ली की संभावित प्राकृतिक वनस्पति का हिस्सा हैं और इस क्षेत्र, जलवायु और मिट्टी के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

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