संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों ( Convention on the Conservation of Migratory Species of Wild Animals: CMS ) के सरंक्षण के लिए 17 से 22 फरवरी के बीच गुजरात के गांधीनगर में 13 वें कोप शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
मेजबान देश के रूप में अगले तीन वर्षों तक भारत इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा। भारत 1983 से ही सीएमएस कन्वेशन पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में से रहा है।
भारत सरकार प्रवासी समुद्री पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है। संरक्षण योजना के तहत तहत इनमें डुगोंग, व्हेल शार्क और समु्द्री कुछुए की दो प्रजातियों की भी पहचान की गयी है।
इस बार इस सम्मेलन की विषय वस्तु है (Theme) ‘ प्रवासी प्रजातियां दुनिया को जोड़ती हैं और हम उनका अपने यहां स्वागत करते हैं।‘
लोगो: सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह दक्षिण भारत की पांरपरिक कला कोलम (Kolam) से प्रेरित है। प्रतीक चिन्ह में इस कला के माध्यम से भारत में आने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षियों जैसे आमूर फाल्कन, हम्पबैक व्हेल और समुद्री कछुओं के साथ प्रमुख को दर्शाया गया है।
शुभंकर (Mascot): वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत देश में सर्वाधिक संकटापन्न प्रजाति माने जाने वाले द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Gibi) को सम्मेलन का शुभंकर बनाया गया है। भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया में प्रवासी पक्षियों के नेटवर्क का अहम हिस्सा माना जाता है। मध्य एशिया का यह क्षेत्र आर्कटिक से लेकर हिन्द महासागर तक के इलाके में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में 182 प्रवासी समुद्री पक्षियों के करीब 297 अवासीय क्षेत्र हैं। इन प्रजातियों में दुनिया की 29 संकटापन्न प्रजातियां भी शामिल हैं।
भारत कई किस्म के प्रवासी वन्य जीवों जैसे बर्फीले प्रदेश वाले चीते, आमुर फाल्कन, बार हेडेड गीज, काले गर्दन वाला सारस, समुद्री कछुआ, डुगोंग्स और हम्पबैक व्हेल आदि का प्राकृतिक आवास है और साइबेरियाई सारस के लिए 1998 में, समुद्री कछुओं के लिए 2007 में, डुगोंग्स के लिए 2008 में और रेप्टर्स के संरक्षण के लिए 2016 में सीएमएस के साथ कानूनी रूप से अबाध्यकारी समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर चुका है।