जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) गुजरात वन विभाग की सहायता से कच्छ की खाड़ी में प्रवाल भित्ति यानी कोरल रीफ के कायाकल्प के लिए ‘बायोरॉक संरचना’ ( Biorock ) का इस्तेमाल कर रहा है।
कच्छ की खाड़ी में मिठापुर तट पर 19 जनवरी, 2020 को बायोरॉक संरचना पानी के भीतर डाली गई है। जहां पर यह बायोरॉक संरचना समुद्री जल में डाली गई है वहां ज्वार का भी अध्ययन किया गया है।
उल्लेखनीय है कि पृथ्वी पर कभी कोरल रीफ सर्वाधिक वैविध्य इकोसिस्टम था परंतु जलवायु परिवर्तन की वजह से इसको काफी नुकसान पहुंच रहा है। भारत में चार प्रमुख कोरल रीफ क्षेत्र मौजूद हैं। ये हैंः अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप मन्नार की खाड़ी एवं कच्छ की खाड़ी।
वर्ष 2015 में स्टैगहॉर्न प्रवाल ( staghorn corals), जो कि एक्रोपोरिडाई परिवार ( family Acroporidae ) का प्रवाल है, का कच्छ की खाड़ी में कायाकल्प किया गया था। यह आज से 10,000 वर्ष पहले विलुप्त हो गया था। एक्रोपोरिडाई परिवार के प्रवाल हैंः एक्रोपोरा फॉर्मोसा, एक्रोपोरा ह्युमिलिस, मोंटिपोरा डिजिटाटा ( Acropora formosa, Acropora humilis, Montipora digitata )।
क्या होती है बायोरॉक संरचना?
समुद्री जल में डुबायी गई इस्पाती संरचना पर घुलित खनिजों से इलेक्ट्रो के संग्रह से निर्मित पदार्थ को बायोरॉक की संज्ञा दी जाती है। इसे मिनरल एक्रिएशन टेक्नोलॉजी ( mineral accretion technology ) भी कहते हैं।
इस संरचना को समुद्री तल पर तैरते सौर पैनल से इलेक्ट्रिक धारा की आपूर्ति की जाती है। इसकी बदौलत कैल्सियम कार्बोनेट का निर्माण होता है।
कोरल के लार्वा इसके प्रति आकर्षित होता है और तेजी से विकसित होता है। खंडित प्रवाल के अंशों को बायोरॉक संरचना से बांधा जाता है और इस तरह ये छह गुणा अधिक गति से विकसित होते हैं।
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