भारत में किसानों द्वारा सालाना बचे हुए चावल के लगभग 23 मिलियन टन अवशेषों को जला दिया जाता है जिससे कि उन्हें पुआल से छुटकारा मिले और अगली फसल जोकि गेहूं होती है, उसे बोने के लिए वे अपने खेतों को तैयार कर सकें। इसके परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण पैदा होता है। इसके अतिरिक्त, शुष्क वातावरण लघु कोलियोपटाइल के साथ गेहूं की किस्मों के अंकुरण के लिए एक चुनौती भी पैदा करता है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए विभाग एवं प्रौद्योगिकी विभाग को एक स्वायत्तशासी संस्थान पुणे स्थित अघरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) के वैज्ञानिकों ने गेहूं में दो वैकल्पिक बौना करने वाला जीनों-आरएचटी14 एवं आरएचटी18 (RHT 14 and RHT 18) का मानचित्रण किया है। ये जीन बेहतर नवांकुर ताकत और लंबे कोलियोपटाइल के साथ जुडे होते हैं।
डीएनए आधारित मार्कर गेहूं के प्रजनकों को गेहूं के प्रजनन के बड़े पूल से इन विकल्पी बौना करने वाला जीनों के वाहक गेहूं लाइनों को उपयुक्त रूप से चयन करने में सहायता करेगे। यह अनुसंधान द क्रॉप जर्नल एंड मोलेकुलर ब्रीडिंग में प्रकाशित किया गया था।
इन डीएनए आधारित मार्करों का उपयोग एआरआई में भारतीय गेहूं की किस्मों में इन जीनों के मार्कर समर्थित अंतरण के लिए किया जा रहा है जिससे कि उन्हें चावल की ठंठ युक्त स्थितियों एवं शुष्क वातावरणों के तहत बुवाई के लिए उपयुक्त बनाया जा सके। इन विकल्पी बौना करने वाले जीनों के साथ गेहूं प्रजनन लाइन वर्तमान में उन्नत चरण में हैं।
फसल अवशेष जलाने में कमी के अतिरिक्त इन विकल्पी बौना करने वाले जीनों के साथ गेहूं की किस्में शुष्क वातावरणों के तहत मृदा में अवशेष आर्द्रता का लाभ उठाने के लिए गेहूं के बीजों की गहरी बुवाई में भी सहायक हो सकती हैं।